केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति के सेवा विस्तार पर उठे सवाल , बिना राष्ट्रपति के अनुमोदन के ही मिली मंजूरी

पटना।
अपने कर्मियों को लेकर सुर्खियों में रहने वाला महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय एक बार फिर विवादों में है, मामला कुलपति संजीव शर्मा के सेवा विस्तार से जुड़ा हुआ है। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी के प्रथम कुलपति प्रोफ़ेसर अरविंद अग्रवाल की नियुक्ति 3 फरवरी 2016 को 5 वर्ष की अवधि के लिए हुआ था। लेकिन, शैक्षणिक योग्यता से संबंधित तथ्य सामने आने एवं इसकी जांच के दौरान प्रोफ़ेसर अरविंद अग्रवाल ने त्यागपत्र दे दिया।

जिसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 15 नवंबर 2018 को स्वीकार कर लिया । उनके कार्यकाल की शेष अवधि यानी 15 /11/ 2018 से 2 फरवरी 2021 तक के लिए प्रोफेसर संजीव शर्मा की नियुक्ति महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के कुलपति पद पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने किया। संजीव शर्मा ने अपने ऊपर चल रही विजिलेंस जांच तथा महिला उत्पीड़न एवं आर्थिक भ्रष्टाचार जैसे तथ्यों को मंत्रालय से छुपाकर इस पद को हासिल किया।


जिसकी जांच शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार कर रहा है। केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 के अनुसूची 44 (A) के तहत प्रोफेसर संजीव शर्मा का अंतिम कार्य दिवस 2 फरवरी 2021 था। क्योंकि प्रथम कुलपति का कार्यकाल 5 वर्ष से अधिक नहीं हो सकता था। लेकिन, प्रोफेसर संजीव शर्मा ने अपने रसूख एवं राजनीतिक पहुंच के बल पर शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल निशंक से मिलीभगत कर अगले कुलपति की नियुक्ति तक अपने सेवा का विस्तार करा लिया जबकि शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के सचिव श्री अमित खरे ने इसका लिखित विरोध किया। कहा कि पीएमओ और राष्ट्रपति भवन से प्राप्त शिकायतों की अभी जांच चल रही है। अतः इनका सेवा विस्तार संभव नहीं है। सेवा विस्तार कुलाधिपति जो कि भारत के महामहिम राष्ट्रपति होते हैं का क्षेत्राधिकार है।लेकिन, शिक्षा मंत्री ने सेवा विस्तार के नोटशीट को अनुमोदित कर दिया।

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