अखिलेश्वर पांडेय
जलालपुर |पूर्वी धुन के महान शिल्पी पंडित महेंद्र मिश्र की जयंती पर प्रखंड के मिश्रवलिया ग्राम स्थित रामजानकी संगीत महाविद्यालय में उपस्थित गायको, संगीत प्रेमियों, आम लोगों ने भोजपुरी भाषा के द्वारा किसी तरह की अश्लीलता फैलाने का माध्यम नहीं बनने की शपथ ली| सभी ने इस बात की शपथ ली कि वे अपने परिवार से इसकी पहल करेंगे |अश्लीलता फैलाने वालों का बहिष्कार करेंगे |इस विषय में सभी मिलकर काम करेंगे
इसके पहले प्राचार्य विनोद मिश्र के नेतृत्व में पंडित महेंद्र मिश्र की पूर्वी गीतों पर संगीत कार्यक्रम का आयोजन किया गया |जिसमें पंडित महेंद्र मिश्र की कई कालजई पूर्वी रचनाओं को कलाकारों ने स्वर दिया| पूर्वी धुन के महान कलाकार चंदन सिंह मिंटू के द्वारा हम त सु नीले सखी, राम जी जन्मले मधुर गीत द्वारा कार्यक्रम की शुरुआत हुई|वही पूजा सिंह ने अंगूरी में डसले बिया नगीनिया राम,दियरा जरा द ,अपना भैया के जगा द प्रस्तुत कर लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया|
रश्मि रानी, अलका ने पटना से बैदा बुलाई द को मधुर स्वर में प्रस्तुत किया| वहीं प्राचार्य विनोद मिश्र ने शंकर नाम उद्हार प्रस्तुत किया| वही पूजा तथा अलका ने संयुक्त रूप से पानी भरे जात रहनी पकवा इनरवा बनवारी हो, गीत गाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया |जबकि पंडित महेंद्र मिश्र के प्रपौत्र अजय मिश्र के गीत "एको गहनवा न ईखे सारी हो, कैसे जाईब ससुराल,आ ग ईले डोलिया कहार ई हो कैसे जाईब ससुराल'ने उपस्थित लोगो की जमकर तालियां बटोरी| कार्यक्रम का संचालन प्रवीण तिवारी ने किया |मौके पर उमेश तिवारी,प्रमोद सिग्रीवाल,सत्येन्द्र दूरदर्शी, पप्पू कुमार, अतुल सिंह, हिमांशु, रश्मि रानी, साक्षी ,पूर्णिमा ,भिखारी ठाकुर सत्येंद्र चौबे दर्जनों अन्य भी उपस्थित रहे |
वहीं पूर्वी धून के महान सम्राट पं महेन्द्र मिश्र की जन्म स्थली जलालपुर प्रखंड का कांही मिश्रवलिया गांव आज भी उपेक्षित है| वही पंडित मिश्र आजादी के इतने वर्षों बाद भी स्वतंत्रता सेनानी नहीं बन पाए ,जबकि उन्होंने सारा जीवन देश के लिए न्यौछावर कर दिया| वहीं राज्य सरकार उनकी जयंती पर प्रतिवर्ष कार्यक्रम आयोजित करती है | उनका पुश्तैनी घर आज भी अर्ध निर्मित है| वहाँ तक जाने के लिए अच्छी सड़क भी नहीं है| स्थानीय लोग बताते हैं कि 16 मार्च 1886 को जन्मे महेंद्र मिश्र नोट जरुर छापते थे |लेकिन सच्चाई यह थी कि वे अपना घर तक नहीं बना पाए थे |अपने पूर्वी धुनों से भोजपुरी दुनिया में लोगों के दिलों पर राज करने वाले महान शख्सियत पंडित महेन्द्र मिश्र पर बनी फिल्मों से फिल्म निर्माताओं ने करोड़ों की कमाई की है| उनके गीतों को गाकर गायकों ने बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर ली |वहीं उन पर पुस्तकें लिखने वाले लोगों ने भी उनके नाम से खूब धन की कमाई |लेकिन उनका परिवार और उनका पुश्तैनी घर उनकी जन्मस्थली आज भी उपेक्षित है |नोट छाप कर अंग्रेजों की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करने वाले तथा स्वतंत्रता सेनानियों को आर्थिक मदद करने वाले पंडित महेंद्र मिश्र के प्रपौत्र पं रामनाथ मिश्र कहते हैं कि आजादी की लड़ाई में अपनी अलग पहचान बनाने वाले पंडित महेंद्र मिश्र आज भी स्वतंत्रता सेनानियों की सूची से गायब हैं |जबकि आजादी के बाद जन्मे लोग स्वतंत्रता सेनानी बन आर्थिक लाभ ले रहे हैं |स्थानीय लोग कहते हैं कि महेंद्र मिश्र नोट जरूर छापते थे लेकिन सारा पैसा स्वतंत्रता सेनानियों को दिया करते थे |उस समय भी उनकी स्थिति बदहाल ही थी |खेती बारी अच्छी थी जिसके कारण परिवार का भरण पोषण आसानी से होता था| लेकिन नोट छापने की चर्चा सभी जगह होती थी |लेकिन किसी को यह नहीं पता था कि महेंद्र बाबा कहां नोट छापते थे | इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने एक जासूस गोपीचंद को लगाया था जो नौकर बनकर महेंद्र बाबा की सेवा करने लगा था|उसको भी यह पता लगाने मे 3 साल लग गए कि महेंद्र बाबा नोट छापते हैं |जब उसकी सूचना पर स्थानीय ब्रिटिश कमांडर नील ने पुलिस की टुकड़ी के साथ उनके घर पर धावा बोला तब इस बात की भनक स्थानीय लोगों को हुई तो सभी लाठी, डंडा, भाला ,फरसा लेकर उनके घर उनकी रक्षा मे पहुंच गए| बड़ी संख्या में लोगों के हुजूम को देखते हुए कमांडर नील ने बुद्धिमत्ता से काम लिया तथा अपने एक कनीय कमांडर को फरमान दिया कि वह यह लिखे कि यहां पर नोट छापने की मशीन नहीं मिली |ऐसा करके वह स्थानीय लोगों के आक्रोश से बच निकला |लेकिन जाते जाते उसने महेंद्र बाबा पर नोट छापने और ब्रिटिश अर्थतंत्र को तबाह करने का आरोप लगाकर मुकदमा कर दिया|
मुकदमे के दौरान उनके यहां नौकर रहे गोपीचंद ने महेंद्र बाबा के गीतों से प्रेरणा लेकर यह गीत सीख लिया था तथा मुकदमे में गवाही दिया कि" नोटिया हो छापी छापी गिनीया भंजवनी ए महेंद्र मिसिर ,ब्रिटिश के कईनी हलकान| सारा जहांनवा में नउवा कईनी बड़ा नउवा पड़ल बा पुलिसइया से काम|इस पर महेंद्र मिश्र माथे पर हाथ रखकर के कहने लगे पाकल पाकल पानवा खि अवलस गोपीचनवा,पीरितीया लगा के भेज ईलस जेलखनवा|इस तरह गोपीचंद जासूस के बयान पर महेंद्र मिसिर को 20 साल की सजा हो गई |उस समय सजा से मुक्त होने के लिए महेंद्र मिश्र के पास अर्थ का अभाव हो गया |खेतों को बेचकर उनके परिवार वालों ने हाई कोर्ट में मुकदमा लड़ा |जिससे सजा की अवधि 10 साल घट गई |बाद में जेलर के निर्देश पर ही उनकी बेटियों ने उन्हें जेल से निकलने में मदद की |जेल से रिहा होने के बाद वह घर पहुंचे| 26 अक्टूबर 1946 को अपने शिवालय में यह निर्गुण "एको गहनवा नईखे सारी हो ,कैसे जाएब ससुराल,आ गई ले डोलिया कहार ई हो कैसे जाएब ससुराल; को गुनगुना रहे थे कि कुछ क्षण बाद में ही वे शिवलिंग के पास गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गई |महेंद्र मिश्र के प्रपौत्र रामनाथ मिश्र कहते हैं कि उनकी अद्वितीय रचना अपूर्व रामायण तथा अन्य कालजई रचनाओं की पांडुलिपि इसी तरह से बिखरी पड़ी थी| कुछ वर्ष पहले ही राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा उसे प्रिंट कराने के लिए ले जाया गया | इससे कुछ आशा बंधी है कि उनकी रचनाएं कम से कम सुरक्षित हो गई||उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा उन्हें स्वतंत्रता सेनानी अब तक नही घोषित किए जाने का मामला विधान परिषद् मे विधान पार्षद मनोज कुमार ने उठाया भी है|
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