बिहार पुलिस ने आईपीएस अफसर विनय तिवारी क्वारंटाइन से मुक्त करने के लिए फिर लिखी बीएमसी को चिट्ठी


पटना:
बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के अड़ियल रवैये के खिलाफ बिहार पुलिस विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है। बीएमसी ने आईपीएस अफसर विनय तिवारी को क्वारंटाइन से जल्द मुक्त नहीं किया तो अदालत जाने का विकल्प भी खुला है। हालांकि इससे पहले गुरुवार को एडीजी मुख्यालय जितेन्द्र कुमार ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का हवाला देते हुए बीएमसी के कमिश्नर को पत्र लिखकर विनय तिवारी को क्वारंटाइन से मुक्त करने को कहा है। 

एडीजी ने अपने पत्र में लिखा है कि राजीवनगर थाना में दर्ज मामले के अनुसंधान में सहयोग के लिए आईपीएस अधिकारी विनय तिवारी 2 अगस्त को मुंबई गए थे। बीएमसी ने उसी रात उन्हें क्वारंटाइन कर दिया। पटना के रेंज आईजी ने क्वारंटाइन मुक्त करने का अनुरोध करते हुए पत्र लिखा था पर अपर आयुक्त ने अनुरोध को अस्वीकृत करने की सूचना दी। इस बीच सुशांत सिंह राजपूत से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सिटी एसपी विनय तिवारी को क्वारंटाइन किए जाने को लेकर‘इससे गलत संदेश जाने’ जैसी मौखिक टिप्पणी की है। यह जानकारी बिहार सरकार के वकील द्वारा दी गई है। 

उन्होंने आगे लिखा है कि राजीवनगर थाना में दर्ज प्राथमिकी की जांच राज्य सरकार ने सीबीआई से कराने की सिफारिश की है। केन्द्र सरकार ने सीबीआई इसकी जांच के लिए अधिकृत भी कर दिया है। चूंकि यह कांड अब सीबीआई को सौंप दिया गया है, लिहाजा पटना के सिटी एसपी (टाउन) की मुंबई में रहने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे में उन्हें होम क्वारंटाइन से मुक्त किया जाए ताकि पटना आकर वह अपने कर्तव्य का निष्पादन कर सकें। इससे पहले क्वारंटाइन मुक्त करने को लेकर पटना के रेंज आईजी ने पत्र लिखा था।  

एक तरह से यह हाउस अरेस्ट है

इस मसले पर मीडिया से बात करते हुए डीजीपी गुप्तेश्वर पाण्डेय ने कहा कि मुंबई पुलिस को सूचना देकर हमारे आईपीएस अधिकारी को वहां भेजा गया था। पटना के एसएसपी ने पत्र लिखा और आईपीएस मेस में जगह उपलब्ध कराने का अनुरोध भी किया था। मैंने खुद महाराष्ट्र के डीजीपी एसएमएस किया था। इसमें उन्हें बताया था कि अनुसंधान को दिशा देने के लिए आईपीएस अफसर तीन दिनों के लिए मुंबई जा रहे हैं। आईपीएस मेस में जगह नहीं दी गई। जहां वे ठहरे थे वहां आधी रात को बीएमसी के पदाधिकारी पहुंचे और बगैर एंटीजन टेस्ट के हाथ पर ठप्पा मारकर क्वारंटाइन कर दिया। इसका मतलब साफ था कि आप बाहर नहीं जा सकते, अनुसंधान और किसी का बयान भी दर्ज नहीं कर सकते। एक तरह से इसे हाउस अरेस्ट ही कहूंगा।

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