सावन की आखिरी सोमवारी और रक्षाबंधन कल, जानें राखी बांधने का शुभ मुहूर्त

डेस्क:
कोरोना महामारी के बीच सोमवार को सावन की आखिरी सोमवारी और भाई बहनों का पवित्र पर्व रक्षाबंधन मनाया जायेगा। पटना सहित राज्यभर में लाखों श्रद्धालु भोलेनाथ को सावन की आखिरी पांचवीं सोमवारी पर जलाभिषेक -रुद्राभिषेक करेंगे तो दूसरी बहनें अपने भाइयों की कलाइयों पर रक्षासूत्र राखी बांधेंगी। 

राखी भाई-बहन, गुरु-शिष्य, प्रकृति और मनुष्य के मध्य तारतम्य स्थापित कर सक्षम और समर्थ से अबला और कमजोर की सुरक्षा के संकल्प का त्योहार है। धार्मिक मान्यता है कि मां लक्ष्मी ने भी पाताल लोक जाकर राजा बलि को  राखी बांधकर उन्हें भाई बनाया था। राणी कर्णवती ने राजा हुमायूं को रक्षा के लिये राखी भेजी थी।  

इस सोमवार भी धार्मिक स्थलों पर ताला होने के कारण श्रद्धालु घरों और गली मोहल्लों के छोटे मंदिरों ,बंद मंदिरों के पटों के पास भी भोलेनाथ को दूध, दही, गंगाजल, ईख रस आदि से अभिषेक करेंगे और भांग, धतूरा, आक फूल अर्पित करके से मुक्ति की गुहार लगायी जायेगी। 


राखी बांधने का मुहुर्त :-

शुभ का चोघड़िया :प्रातः 9:30 से 11 बजे तक रहेगा। 
अभिजित-मुहूर्त : दोपहर 12:18 से1:10 बजे तक रहेगा। 
लाभ -अमृत का चोघड़िया : दोपहर 4:02 से 7:20 बजे तक रहेगा

ज्योतिषाचार्य विप्रेंद्र झा माधव के मुताबिक रक्षाबंधन पर पूर्णिमा व श्रवणा नक्षत्र पड़ने से अमृत योग व सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन  रहा है। मिथिला पंचागों को मुताबिक सोमवार को श्रावण पूर्णिमा रात 08.35 बजे तक है। सुबह 08.35 में भद्रा समाप्ति हो जायेगी। इसके बाद राखी बांधने का शुभ मुहूर्त प्रारंभ होता है। ज्योतिषाचार्य पीके युग ने बनारसी पंचांगों के हवाले से बताया कि सोमवार की सुबह 9.28 बजे भद्रा की समाप्ति हो जायेगी।  इसके बाद राखी बांधी जा सकेगी। दरअसल भद्रा के दौरान राखी नहीं बांधी जाती है। ज्योतिषी प्रियेंदू प्रियदर्शी के मुताबिक  रक्षाबंधन का पर्व  सर्वार्थ- सिद्धि योग एवं आयुषमान योग की संधि में मनाया जाएगा। 


पूर्णिमा पर जलाभिषेक अति फलदायी
 
ज्योतिषाचार्य पीके युग के मुताबिक सावन की पांचवीं सोमवारी पर श्रावणी पूर्णिमा , बुधादित्य योग,विषयोग व उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का संयोग है। पूर्णिमा के देवता चंद्रदेव हैं और सोमवार के भगवान शिव हैं। भगवान शिव के माथे पर चंद्रमा विराजमान हैं। वहीं उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में ही देवताओं ने असुरों पर विजय प्राप्त की थी। यह संयोग शुभ फलदायी है। इससे इस सोमवारी को  जिन श्रद्धालु की कुंडली में विष योग, ग्रहण योग और केमद्रुम योग है उन्हें भगवान शिव की आराधना करने से इन ग्रहों से मुक्ति मिलेगी। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र रहने पर शिवकी पूजा से व्याधियों व विपत्तियों का नाश होगा। यह भी मान्यता है कि सावन की सोमवारी पर भगवान शिव और मां पार्वती धरती पर विचरण करने आते हैं। सावन की सोमवारी पर व्रत पूजन से सालभर के सोमवारी व्रत का फल मिलता है। भोलेनाथ का ईख से अभिषेक करने पर लक्ष्मी की वृद्धि,दूध से अभिषेक करने पर सर्वकल्याण होता है। उनके मुताबिक सावन के हर दिन शिववास होता है। सावन का हर दिन भोलेनाथ को प्रिय है। इसलिये सावन में हर दिन शिव की आराधना कल्याणकारी होती है।


राशि के अनुसार राखी का रंग
मेष -लाल, 
वृष-सफेद,
मिथुन-हरा, 
कर्क- सफेद,
सिंह-लाल, 
कन्या-हरा,
तुला-सफेद, 
वृश्चिक- लाल,
धनु -पीला, 
मकर एवं कुंभ--नीला या बैगनी ,
मीन-पीला ।

श्रावण पूर्णिमा को मनायी जाती राखी
 
भारत में श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को राखी, श्रावणी, सावनी, और सलूनों के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन राखी के धागे को कवच सा शक्तिशाली माना गया है, जो कच्चे सूत, रंगीन कलावे और रेशमी धागे से निर्मित है। राखी का यह धागा रक्षा के संकल्प का पवित्र प्रतीक है। यह आंतरिक और बाह्य भय के उन्मूलन का पर्व है। 


सावन की सोमवारी पर करें पाठ:-

शिव चालीसा, ओम नम: शिवाय:, रुद्राष्टक, शिव पंचाक्षर स्रोत 

करें अभिषेक:-
गंगाजल, दूध, दही, घी, मधु, ईख का रस 

करें अर्पित:-
बेलपत्र, आक का फूल, कनेर, नीलकमल, कमल, भांग, धतूर, भस्म. चंदन, रोली, शमीपत्र, कुश, श्रीफल

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