मोतिहारी सेंट्रल यूनिविर्सिटी के वीसी की नौकरी खतरे में , एनओसी में छुपाया केस , विभाग ने मांगी रिपोर्ट

मोतिहारी(प्रकाश राज)। अक्सर विवादों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले केंद्रीय विश्वविद्यालय एक बार फिर वीसी के कारनामों से चर्चा में है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वीसी की नौकरी खतरे में है, विभाग ने वीसी प्रो. संजीव शर्मा के नियुक्ति से पूरे दिए गए एनओसी पर चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी मेरठ से रिपोर्ट मांगी है।  चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रहे संजीव शर्मा अक्सर विवादों को लेकर ही सुर्खियों में रहते है, वीसी पर विजलेंस भ्रष्ट्राचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13(1)d और 13(2) के तहत दर्ज मुकदमे की जांच ही कर रही थी कि प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने अपने नियुक्ति में दिए गए एनओसी में साफ शब्दों में लिखा कि उनके विरूद्ध किसी भी प्रकार के आरोप नही है। प्रो. शर्मा ने एमएचआरडी से अपने मूल विश्वविद्यालय यानी चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के अधिकारियों के मिलीभगत से गलत तरीके से रीडर से प्रोफेसर बनने और अन्य कई मामलों में विजलेंस जाँच जो अभी लंबित है और उस तथ्य को छुपा दिया और गलत तरीके से महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति का पद हासिल किया।

कुलपति बनने से पहले संजीव कुमार शर्मा उत्तर प्रदेश के मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र विभाग के एचओडी थे. प्रोफेसर शर्मा ने बीए से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई भी मेरठ विश्वविद्यालय में की थी.वे साल 2007 से 25 फरवरी 2019 तक इस विश्वविद्यालय में पढ़ाने का काम करते रहे थे. इसी बीच साल 2016 में उन्हें रजिस्ट्रार बनाया गया था. आरोप था कि विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति एसपी ओझा ने फर्जी तरीके से इस पद पर उनकी नियुक्ति की थी. इसके अलावा यह भी आरोप था कि उन्हें गलत तरीके से रीडर से प्रोफेसर बनाकर उन्हें प्रमोशन दिया गया.

 मामलों को लेकर साल 2017 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(डी) और धारा 13(2) के तहत मामला दर्ज किया गया था जिसमें एसपी ओझा को मुख्य आरोपी बनाया गया था. इन धाराओं के तहत अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है.एफआईआर के मुताबिक तत्कालीन कुलपति सन्त प्रकाश ओझा ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए 11.09.2006 को आदेश जारी कर डॉ संजीव कुमार शर्मा को रजिस्ट्रार बना दिया था, जबकि कुलपति के पास ऐसी कोई शक्ति नहीं होती है.इसके अलावा एफआईआर में यह भी लिखा गया है कि ओझा ने अपने पद को दुरुपयोग करते हुए शर्मा को लाभ पहुंचाने के लिए उनकी रीडर से प्रोफेसर पद पर प्रमोशन किया. जबकि दिसंबर 2006 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सन्त प्रकाश ओझा को पत्र लिखकर कहा था कि संजीव कुमार शर्मा द्वारा आठ साल की सेवा पूर्ण न करने के कारण उन्हें प्रोफेसर के पद पर प्रमोट न किया जाए.प्रो. सजीव कुमार शर्मा के विजिलेंस क्लीयरेंस का दस्तावेज़ प्रो. सजीव कुमार शर्मा के विजिलेंस क्लीयरेंस का दस्तावेज़हालांकि द वायर द्वारा देखे गए दस्तावेजों से पता चलता है कि कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए एमएचआरडी को दी जाने वाली विजिलेंस क्लीयरेंस में ये सारी जानकारी नहीं दी गई है. ये जानकारी उस संस्थान द्वारा दी जानी होती है जिस संस्थान में अभ्यर्थी कार्यरत होता है, यानी की मेरठ विश्वविद्यालय को ये जानकारी देनी थी.मंत्रालय के प्रोफॉर्मा पर लिखा है कि ‘क्या अभ्यर्थी के खिलाफ पिछले 10 सालों में विजिलेंस एंगल से किसी दुराचार की जांच की गई थी’. इसके जवाब में शर्मा के विजिलेंस क्लीयरेंस पत्र में लिखा गया ‘नहीं’. मेरठ विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार धीरेंद्र कुमार से जब इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उस समय संस्थान को एफआईआर की जानकारी नहीं थी.
अगर एफआईआर दर्ज की गई है तो जांच जरूर होगी. उन्होंने कहा, ‘यहां पर मेरी नियुक्ति अप्रैल 2019 में हुई है. ये विजिलेंस क्लीयरेंस मेरे से पहले के तत्कालीन रजिस्ट्रार बीपी कौशल द्वारा दिया गया था. मैने जो रिकॉर्ड देखा है उससे पता चलता है कि विश्वविद्यालय के पास संजीव शर्मा के खिलाफ दर्ज एफआईआर की जानकारी नहीं थी. अब ये मामला संज्ञान में आया है तो जांच जरूर होगी.’हालांकि इस मामले में पिछले साल अगस्त महीने में सतर्कता विभाग ने क्लोजर रिपोर्ट सौंप दी थी लेकिन कोर्ट ने अभी इसे स्वीकार नहीं किया है.खास बात ये है कि इससे पहले एक ऐसा ही मामला सामने आया था जहां नियुक्ति प्रक्रिया में अभ्यर्थी का विजिलेंस क्लीयरेंस नहीं होने की वजह से नियुक्ति प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया था. महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के पहले कुलपति के लिए तीन नाम शॉर्टलिस्ट किए गए थे, जिसमें हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के डीन एवं परीक्षा नियंत्रक प्रोफेसर अरविंद कुमार अग्रवाल, बिलासपुर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर गौरी दत्त शर्मा और टीएम भागलपुर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रोफेसर रमा शंकर दूबे शामिल थे.हालांकि नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान पता चला था कि असम विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति तपोधिर भट्टाचार्जी के खिलाफ केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने पीआईडीआर के तहत शिकायत दर्ज किया था. इस मामले में प्रोफेसर जीडी शर्मा का भी नाम था. इस आधार पर एमएचआरडी ने कहा था कि गौरी दत्त शर्मा को कुलपति पद के लिए विचार नहीं किया जा सकता । महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय ने इस संबंध में कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है.

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