सावित्रीबाई फुले: गूगल ने देश की पहली महिला शिक्षक की जयंती पर दिया ट्रिब्यूट

देश की पहली महिला शिक्षक जिन्होंने अपना जीवन सिर्फ लड़कियों को पढ़ाने और समाज को ऊपर उठाने में लगा दिया, नाम सावित्रीबाई फुले. आज सावित्रीबाई फुले की 189वीं जयंती है, इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. शिक्षा, महिला सशक्तिकरण के लिए उन्होंने जो किया उसके लिए पीएम मोदी ने उन्हें नमन किया. सावित्रीबाई फुले एक दलित परिवार में पैदा हुई थीं, लेकिन तब भी उनका लक्ष्य यही रहता था कि किसी के साथ भेदभाव ना हो और हर किसी को पढ़ने का अवसर मिले. सावित्री बाई से जुड़ी कुछ बातें पढ़ें...

कौन थीं सावित्रीबाई फुले?

सावित्रीबाई फुले, भारत की पहली महिला शिक्षक, कवियत्री, समाजसेविका जिनका लक्ष्य लड़कियों को शिक्षित करना रहा. सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के एक दलित परिवार में हुआ. मात्र नौ साल की उम्र में उनकी शादी क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले से हो गई, उस वक्त ज्योतिबा फुले सिर्फ 13 साल के थे.

पति क्रांतिकारी और समाजसेवी थे, तो सावित्रीबाई ने भी अपना जीवन इसी में लगा दिया और दूसरों की सेवा करनी शुरू कर दी. 10 मार्च 1897 को प्लेग द्वारा ग्रसित मरीज़ों की सेवा करते वक्त सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया. प्लेग से ग्रसित बच्चों की सेवा करते हुए उन्हें भी प्लेग हो गया था, जिसके कारण उनकी मृत्यु हुई.


स्कूल, दो साड़ी और गोबर!

सावित्रीबाई ने अपने जीवन के कुछ लक्ष्य तय किए, जिनमें विधवा की शादी करवाना, छुआछूत को मिटाना, महिला को समाज में सही स्थान दिलवाना और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना. इसी कड़ी में उन्होंने बच्चों के लिए स्कूल खोलना शुरू किया. पुणे से स्कूल खोलने की शुरुआत हुई और करीब 18 स्कूल खोले गए.


1848 की बात है, उस वक्त सावित्रीबाई फुले स्कूल में पढ़ाने के लिए जाती थीं. तब सावित्रीबाई फुले दो साड़ियों के साथ स्कूल जाती थीं, एक पहनकर और एक झोले में रखकर. क्योंकि रास्ते में जो लोग रहते थे उनका मानना था कि शूद्र-अति शूद्र को पढ़ने का अधिकार नहीं है. इस दौरान रास्ते में सावित्रीबाई पर गोबर फेंका जाता था, जिसकी वजह से कपड़े पूरी तरह से गंदे हो जाते और बदबू मारने लगते.

स्कल पहुंचकर सावित्रीबाई अपने झोले में लाई दूसरी साड़ी को पहनती और फिर बच्चों को पढ़ाना शुरू करतीं. ये सिलसिला चलता रहा, लेकिन बाद में उन्होंने खुद के स्कूल खोलना शुरू कर दिया जिसका मुख्य लक्ष्य दलित बच्चियों को शिक्षित करना था.

नौ छात्रों के साथ स्कूल शुरू और फिर...

सावित्रीबाई फुले ने 3 जनवरी,1848 यानी अपने जन्मदिन के दिन ही अलग-अलग जातियों की नौ छात्रों को एकत्रित किया और स्कूल की शुरुआत कर दी. ये मुहिम सफल हुई और अगले एक साल के अंदर अलग-अलग स्थान पर सावित्रीबाई फुले, ज्योतिबाफुले ने पांच स्कूल खोल दिए. जो समाज उस वक्त लड़कियों को घर में रहने के लिए मजबूर करता था, उस समाज के लिए सावित्रीबाई की मुहिम एक तमाचा थी.

इसी मुहिम ने महिलाओं को सशक्त करने का काम किया और लोगों को इस बात को सोचने पर मजबूर कर दिया कि महिलाओं को भी पढ़ाई का अधिकार है और बराबरी का हक है. सावित्रीबाई फुले की ये कथन आज के दौर में भी बिल्कुल सटीक लगते हैं.

सावित्रीबाई फुले के द्वारा लिखी गई मराठी कविता का हिंदी उच्चारण...

जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती

काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो

ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है

इसलिए, खाली ना बैठो,जाओ, जाकर शिक्षा लो

दमितों और त्याग दिए गयों के दुखों का अंत करो, तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है

इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो, ब्राह्मणों के ग्रंथ जल्दी से जल्दी फेंक दो.

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