नई दिल्ली । दिल्ली में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो गई है। ऐसे में सवाल है कि क्या भाजपा 2019 लोकसभा के चुनाव के प्रदर्शन को दोहरा पाएगी, जिसमें 70 में से 65 विधानसभा सीटों पर बढ़त पाई थी? सवाल यह भी क्या आम आदमी 2015 के चुनावों को दोहरा पाएगी, जिसने 70 में से 67 सीटें जीती थी। सवाल यह है कि इस बार कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहता है ? आइये जानते हैं दिल्ली की तीन प्रमुख पार्टियों आम आदमी पार्टी (आप), भाजपा और कांग्रेस की ताकत और कमजोरी।
आम आदमी पार्टी की ताकत और कमजोरी
सबसे पहले बात करते हैं कि आम आदमी पार्टी की। आम आदमी पार्टी की ताकत है कि उसकी मुफ्त बिजली-पानी की योजना, जिसने आम लोगों में जगह बनाई है। साथ ही शिक्षा व्यवस्था में भी बड़े स्तर पर सुधार किया है, उसका असर देखने का मिल रहा है। साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार का भी असर पड़ा है, जिसमें मोहल्ला क्लीनिक की अहम भूमिका है। साथ ही परिवहन सुविधा में महिलाओं को मुफ्त आवाजाही की सुविधा दी दी गई है। इसका भी असर देखने को मिलेगा।
इसके साथ पिछले कुछ साल में आम आदमी पार्टी की कमजोरी भी देखने को मिली है। इस चुनाव में योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, कपिल मिश्रा, अलका लांबा जैसे पुराने रणनीतिकारों का साथ नहीं मिलेगा। ऐसे में पार्टी मुख्य रूप से अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पर निर्भर है। पिछले कुछ सालों में आम आदमी पार्टी की नौकरशाहों से भी अनबन देखने को मिली। यहां तक कि राज्य के मुख्य सचिव से लड़ाई का मामला कोर्ट तक पहुंच गया। इसके साथ-साथ पिछले पांच सालों में केंद्र सरकार से भी संबंध खराब रहे। यहां पर उपराज्यपाल से भी तनाव पूर्ण सबंध रहे।
भाजपा की ताकत और कमजोरी
भाजपा की ताकत यह है कि संसद में बिल पारित होने से अनियोजित कॉलोनियों में संपत्ति का मालिकाना हक मिलने से राजधानी के 40 लाख लोगों को फायदा पहुंचा। उसका फायदा विधानसभा चुनावों में मिल सकता है। केंद्र सरकार ने कई योजनाएं लागू की हैं, जिसमें उज्जवला योजना, आयुष्मान भारत, शौचालयों का निर्माण का फायदा लोगों को मिला है। अगर दिल्ली में भी भाजपा की सरकार बनती है तो डबल इंजन की सरकार होगी, जिससे दिल्ली का तेज गति से विकास होगा। जो कामकाज में अड़चन होती है वह हर स्तर पर दूर होगी। प्रदूषण की समस्या का भी निदान होगा। इसके साथ ही पिछले लोकसभा चुनावों और नगर निगम के चुनावों में भाजपा को भारी जीत मिल चुकी है, जिससे विधानसभा चुनावों में भाजपा को प्रेरणा मिलेगी। भाजपा की मुख्य कमजोरी दिल्ली में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर असमंजस है। यहां भाजपा सांसद मनोज तिवारी प्रदेश अध्यक्ष हैं। लेकिन उनको अभी मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया गया है। इसके साथ ही पार्टी में गुटबाजी भी है, जिसका असर चुनावों की रणनीति पर पड़ सकता है। इसके साथ ही भाजपा को व्यापारियों को साथ बनाए रखने की चुनौती है क्योंकि अर्थव्यस्था में मंदी से सबसे अधिक घाटा व्यापारियों को ही उठाना पड़ा है।
कांग्रेस की ताकत और कमजोरी
दिल्ली में कांग्रेस के पास मुख्य ताकत शीला दीक्षित का 15 सालों का कामकाज है। शीला दीक्षित के कार्यकाल में कॉमनवेल्थ गेम्स के कारण दिल्ली में कई स्तरों पर काम हुआ, जिसमें सड़क का जाल, फ्लाईओवरों का निर्माण, परिवहन में सीएनजी का प्रयोग, लोअर फ्लोर बसों का परिचालन और कच्ची कॉलोनियों के बजट आवंटन शुरू हुआ। उस तरह का निर्माण बाद में नहीं हो सका। इसके साथ ही कांग्रेस के प्रदर्शन में लोकसभा चुनावों में सुधार हुआ है। इस चुनाव में पार्टी दूसरे नंबर पर आ गई, इससे पार्टी को ऊर्जा मिली है। दिल्ली में पार्टी के पीछे होने के बाद भी अनुभवी नेता जुड़े रहे। यहां तक कि अरविंदर सिंह लवली, कृष्णा तीरथ और अलका लांबा ने पार्टी में वापसी की।
कांग्रेस के पास सबसे बड़ी कमजोरी मजबूत नेतृत्व की कमी देखने को मिली। शीला दीक्षित की मौत के बाद पार्टी के पास बड़े स्तर का नेता का अकाल हो गया। यही कारण है कि शीला दीक्षित की मौत के काफी समय तक प्रदेश अध्यक्ष का पद खाली रहा। अजय माकन जैसे पुराने नेता भी नेतृत्व संभालने को लेकर पीछे हट गए। पार्टी में गुटबाजी देखने को मिली। दो बार सांसद रहे संदीप दीक्षित राजनीति को अपने पांव पीछे खिंच लिए लिए हैं। हालांकि कांग्रेस के वोट प्रतिशत में सुधार हुआ है। बिखरा संगठन उसके लिए परेशानी का सबब बना हुआ है।
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